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International Journal of Geography, Geology and Environment
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P-ISSN: 2706-7483, E-ISSN: 2706-7491

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"International Journal of Geography, Geology and Environment"

2022, Vol. 4, Issue 1, Part B

विकास के अभाव में उत्तराखण्ड के राजी जनजातिः स्थिति एवं समस्यायें


Author(s): सुरेन्द्र सिंह एवं डी0 एस0 परिहार

Abstract: आदिम या आदिवासी समाज विश्व के विभिन्न प्रदेशों में पाये जाते हैं। जो वर्तमान गतिशील समाज व सभ्यता से दूर रहते हैं तथा पारम्परिक परम्पराओं, व्यवसायों, जीवनशैली को सुरक्षित रखने को पूर्ण रूप से प्रयासरत है। आदिम जनजातियॉ मुख्य रूप से छोटे-छोटे समूहों में रहते हुये प्रथामिक उधोगों, आखेत, वस्तुओं का संग्रहण, पशुपालन, कृषि एवं मत्स्य आखेट इत्यादि से अपना जीवन यापन करते हैं। उत्तराखण्ड में निवासरत भोटिया, थारू, जौनसारी, बुक्शा एवं राजी को वर्ष 1967 में अनुसूचित जनजाति घोषित किया गया था। उक्त पॉच जनजातियों में बुक्सा एवं राजीजन जाति आर्थिक, शैक्षिक एवं सामाजिक रूप से अन्य जनजातियों की अपेक्षा काफी निर्धन एवं पिछडी होने के कारण उन्हें आदिम जनजाति समुह की श्रेणी में रखा गया है। भारत की विलुप्त होती आदिम जनजातियों की सूची में ‘वनराजी‘ या ‘वनरौत‘ जाति भी शामिल है। राजि मूलतः आदिम आखेटक संग्रह जाति है जिनका विस्तार पिथौरागढ़ से लेकर दक्षिणी नेपाल तक पाई जाती है। सन् 1975 में भारत सरकार ने देश की 75 जनजातियों के साथ ही राजी और बोक्सा को आदिम जनजातियों में शामिल किया तथा यह जनजाति देश की उन 18 आदिम जनजातियों में शामिल है जिनकी जनसंख्या हजार से भी कम रह गई हैं। भाषाई आधार पर राजीयों को राज किरातों के वंशज होने का अनुमान लगाया जाता है। वनराजी उत्तराखण्ड के दो जनपद पिथौरागढ़ और चम्पावत में अधिकता से पाये जाते हैं इनमें राजि के 143 परिवार निवास करते हैं। राजीयों की नवीनतम आबादी 690 दर्ज हुई जिनमें 366 पुरूष और 324 महिलायें हैं जो धारचूला, डीडीहाट और चम्पावत के 9 गॉवों में वनराजी निवास करत थे। सन् 2001 में इनके परिवारों की कुल संख्या 130 तथा इनकी कुल जनसंख्या लगभग 528 थी। इस स्थिति को मद्देनजर रखते हुये इनके लिये राजकीय सेवाओं, शिक्षण संस्थाओं, सार्वजनिक उद्यमों, निगमों एवं स्वायत्तशासी संस्थाओं में आरक्षण के लिये नया शासनादेश जुलाई 2001 में जारी किया। उत्तराखण्ड व भारत सरकार ने इन्हें पोषित करने के लिये कई परियोजनायें चलायी है जिससे ये भी भारत के सामान्य नागरिक की तरह रहन-सहन, खान-पान की स्थिति हो। अग्र प्रस्तुत अध्ययन में विकास के अभाव में उत्तराखण्ड राज्य के राजी जनजाति की स्थिति एवं समस्याओं का अध्ययन विस्तार से प्रस्तुत किया गया है।

Pages: 101-109 | Views: 328 | Downloads: 39

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How to cite this article:
सुरेन्द्र सिंह एवं डी0 एस0 परिहार. विकास के अभाव में उत्तराखण्ड के राजी जनजातिः स्थिति एवं समस्यायें. Int J Geogr Geol Environ 2022;4(1):101-109.
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