भूमि सुधार कार्यक्रमों से अनुसूचित जनजाति समुदायों के सामाजिक पृष्ठभूमि का अध्ययन (सतना जिले का भौगोलिक अध्ययन)
Author(s): अभिलाष कुमार हरिजन, दिनेश कुमार
Abstract: भूमि सुधार अनुसूचित जनजातीय समुदायों के जीवन का एक पहलू है जिससे उनके जीवन का सतत विकास हो पाया है। मानव जीवन में अनुसूचित जनजातीय समुदाय के लोग कृषि कार्य की दृष्टि से हमेशा जुड़े रहे हैं। संसाधन न होते हुए भी जनजातीय समुदाय अपने आपको अन्य जातियों की अपेक्षा अपना विकास प्राकृतिक तरीके कर रहे हैं। भूमि जनजातीय समुदायों के लिए विकास का एक आधार है जिससे उनका सामाजिक-आर्थिक विकास संभव हो पाया है। भूमि सुधार की आवश्यकता इसलिए महसूस की गई कि यह प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार से गरीबी और सामाजिक स्तर को ऊॅचा उठाने का एक उपाय है। सामाजिक रूप से हो रहे विकास को उनके समुदायों के अधिकारों को संरक्षण एवं समानता की दिशा में खेतिहर महिला श्रमिकों का भी सशक्तीकरण हुआ है। ग्रामीण जनजातीय समुदायों के जीवन गुणवत्ता में सुधार हेतु कृषि आय, बेहतर खाद्य उपलब्ध होने से उनके आय में वृद्धि होगी जिससे उनका सामाजिक विकास हो पायेगा। भूमिहीन कृषि मजदूरों के जीवन में सुधार हेतु उन्हें भूमि विवरण कर उनके अधिकारों का संरक्षण किया जाना चाहिए। जिससे वे अपना सामाजिक उत्थान कर समाज में अपना दायित्व निभा सके।
भूमिहीन मजदूरों की समस्या को हल करने के लिए आचार्य विनोबा भावे द्वारा देष में भूदान या भूमि आंदोलन शुरू किया था। भूदान का प्रभाव सतना जिले में भी पड़ा। इस आंदोलन को और अधिक सुविधाजनक बनाने के लिए, विंध्य प्रदेष भूदान यज्ञ अधिनियम 1955 में पारित किया गया।
Pages: 34-37 | Views: 122 | Downloads: 60Download Full Article: Click Here
How to cite this article:
अभिलाष कुमार हरिजन, दिनेश कुमार. भूमि सुधार कार्यक्रमों से अनुसूचित जनजाति समुदायों के सामाजिक पृष्ठभूमि का अध्ययन (सतना जिले का भौगोलिक अध्ययन). Int J Geogr Geol Environ 2025;7(3):34-37.